मीरा हर घड़ी कृष्ण धुन गाए,
पर कृष्ण कभी मिलन को न आए,
मीरा भई कृष्ण बावरी,
सो विष बन सुधा रग-रग में समाए
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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