जईसे दिवा व रात्रि बनाए एक दिन,
वईसे माता के प्रीत से महके हर दिन,
जो मन में छवि माता के रखे बसा के,
ओके घर में बनें वसंत-बहार हर दिन
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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