जीवन की नाव प्रीत की नदि पर हीं है चलती,
मृत्यु सदा जीवन के साथ हीं है चलती,
जो महाकाल की करतें हैं भक्ति,
उन्हे मृत्यु कभी असमय नहीं है बुलाती
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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