रेत की दीवार ढ़ह जाती है, क्षणभर में,
पूनम कर देती है जग रोशन पल भर में,
हर ग़म है हो जाता पल भर में दूर,
जब छाता है माता रानीं का नूर सारे जग में
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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