Thursday, 10 December 2020

जब अन्नदाता के मन में चुभ जाती है राजनीति की शूल,

तब निर्बल है हो जाती अर्थव्यवस्था की मूल,

मंडरानें लगते हैं भूखमरी के बादल काले,

सबक देता है वो उनको जिसनें की है भूल


कवि मनीष 

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