जब अन्नदाता के मन में चुभ जाती है राजनीति की शूल,
तब निर्बल है हो जाती अर्थव्यवस्था की मूल,
मंडरानें लगते हैं भूखमरी के बादल काले,
सबक देता है वो उनको जिसनें की है भूल
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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