जीवन संग चले मृत्यु भी संग-संग,
जीवन के रहे न कभी एक समान रंग-ढ़ंग,
और जो बसावे राम भक्त के मन में,
ओहके जीवन नभ से बरसे वसंत-बहार हर क्षण
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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