गजानन,गणाधिप,लम्बोदर,
नाम से हीं परमबुद्धि है होता उजागर,
है होता सर्वप्रथम पूजन उसका,
है उसके समक्ष अति तुच्छ बुद्धि का सागर
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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