ज्ञान बिना न जग चले,
ज्ञान बिना न संकट टले,
जो करे माँ सरस्वती के आराधना,
संग-संग ओहके समस्त वेद-पुराण चले
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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