बगिया जो होती है,भरी पुष्पों से रंग-बिरंगी,
बना देती है हर मन को रंग-बिरंगी,
और जो बसा कर हैं रखते मन में माता की छवि,
उनका हर दिन है होता है सतरंगी,उमंगी
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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