है कण-कण में जो समाया,
है जो फूलों के रंग और सुगन्ध बनके छाया,
है वो राम के सद्विचार,
जो बनकर रहतें सदा मानवता का साया
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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