जटा से उसके निकलती है गंगा,
भुजंगधारी है वो मस्त मलंगा,
चंद्रमौली,गंगाधर,त्रिशूलधारी नाम हैं उसके अनेक,
है वो कैलाशी,पालनकर्ता त्रिलोक का,
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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