है रात अंधेरी घनघोर तो क्या हुआ,
है कोई नहीं साथ तो क्या हुआ,
हम अपनें दम पर,
आसमान को झुका देंगे,
चमकते सूरज की रोशनीं को भी,
अपनीं चमक से फ़िका कर देंगे,
है पर्वतों सा अटल इरादा हमारा,
लहरें सर पटक कर अपनें घर को हीं जाएँगी,
है रात अभी हावि तो क्या हुआ,
सुबह को अपनीं दहलीज़ पर एक दिन ज़रूर लाएँगे,
है रात अंधेरी घनघोर तो क्या हुआ,
है कोई नहीं साथ तो क्या हुआ,
हम अपनें दम पर,
आसमान को झुका देंगे,
चमकते सूरज की रोशनीं को भी,
अपनीं चमक से फ़िका कर देंगे
कवि मनीष
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