क्या है सच और क्या झूठ इंसां को इससे क्या है मतलब,
आज के इंसां को तो सिर्फ़ ख़ुद से हीं है मतलब,
बस पेट भरनें को मिल जाए,
बाकि भाड़ में जाए दुनिया के सारे करतब
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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