अनगिनत तारें भी मिलके दूर नहीं कर पाते अंधेरा,
पर एक चाँद कर देता है उजियारा हीं उजियारा,
भक्ति तो है रोशनीं का अथाह सागर,
पल भर में जो है कर देता सवेरा हीं सवेरा
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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