कठिन राह पे जो चलनें से नहीं डरते हैं,
पर्वतों की ऊँचाई से जो नहीं घबराते हैं,
एक दिन वो बनते हैं चमकता सूर्य,
जिसकी चमक से हर मंज़र जगमगाते हैं
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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