हर निर्धन को बनानें धनवान,
देनें वाली अमिट सम्मान,
हे माँ लक्ष्मीं अपनीं सदा बरसाकार,
तुम बचाते रहना हर दरिद्र का स्वाभिमान
शरद पूर्णिमा की अनंत शुभकामनाएँ
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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