Thursday, 29 October 2020

जीवन है बसा माता के आँखों में,

प्रेम है छलकता माता के आँखों से,

जब उठातीं हैं कृपाण माता,

है निकलता प्राण पापियों के वक्षों से


है बड़ी अलबेली,अद्भुत ये माता,

है हर रूप इसका सबको भाता,

प्रेम से जो हैं लगाते इसका जयकारा,

है भर जाता झोलियों में उनके चाँद-सितारा,


करती है मुराद पूरी ये अपनें हाथों से,


जीवन है बसता माता के आँखों में,

प्रेम है छलकता माता के आँखों से,

जब उठातीं हैं कृपाण माता,

है निकलता प्राण पापियों के वक्षों से 


कवि मनीष 

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