अध्यात्म को जग-जग तक पहुँचाकर,
चला गया वो धरती को छोड़कर,
युवाओं के भीतर सकारात्मक प्राण फूंकने वाले,
तुम्हारे ज्ञान को हमेशा याद रखेगा हर कोई उम्रभर
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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