आती बहार तो खिल जातें हैं फूल,
आता है पतझड़ तो झड़ जातें हैं फूल,
एक रंगीन मौसम का आता है मेला,
जब माता के चरणों की उड़ती है धूल
कवि मनीष
प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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