मेरी प्यारी गौरैया
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मेरी प्यारी गौरैया,
प्यारी-न्यारी गौरैया,
मेरे बचपन की साथी,
मेरी दुलारी साथी,
पहले तो रोज़ थी वो नज़र आती,
अपनें जोड़े संग थी इठलाती-बलख़ाती,
पर अब वो कभी नज़र नहीं आती,
मेरे बचपन की साथी,
मेरी दुलारी साथी,
कुछ दिन पहले उसका साथी आया मेरे घर,
पाग़ल हो चुका था, उसका मस्तिष्क गया था बिगड़,
हमारे तकनीकों नें उसे पाग़ल था कर डाला,
उसकी ज़िन्दगी को नर्क से भी बत्तर था बना डाला,
कितना होता अच्छा की सबकुछ पहले जैसा हो जाता,
बेफ़िजूल के विलासिता से हमारा जीवन मुक्त हो जाता,
और फिर कोई भी जीव अपनें प्राण असमय न गंवाता,
चारों तरफ़ प्रेम का बादल मंडराता,
तब हर-पल चहकती प्रेम की चिड़ैया,
मेरी प्यारी गौरैया,
प्यारी-न्यारी गौरैया,
मेरे बचपन की साथी,
मेरी दुलारी साथी,
(घरेलू गौरैया आज विलुप्ति के कगार पर है, घरेलू गौरैया बिहार का राजकीय पक्षी है, इसको बचानें के लिए कई अभियान चलाए जा रहें हैं, आईये हम सब भी इन अभियानों का साथ दें, जहाँ कहीं भी घरेलू गौरैया नज़र आए उसे एक घोंसला प्रदान करें । )
कवि मनीष
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