जीवन के वे पल मुझे बड़े प्यारे थें,
जब साथ मेरे ममता के किनारे थें,
दिन का हर पहर आशाओं से था भरा हुआ,
हम दोनों एक दूसरे के जीनें के सहारे थें
कवि मनीष
प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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