Thursday, 8 August 2019

रूमानीं मुक्तक

हो तुम वो चाँद जिसमें कोई दाग नहीं,
हो तुम वो बाग़ जिसमें कोई ख़ार नहीं,
तुम हो लाली सहर की,
तुम हो वो आफ़ताब जिसमें कोई आग नहीं 
कवि मनीष 

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