देश हीं आत्मा है,
देश हीं हमारा गुलशन है,
वतन के नाम पर,
वतन के नाम पर,
जो ना सर झुकाते हैं,
ज़िन्दगी उनकी इक दिन,
बंजर हो जाती है,
कांटों की गलियों में ख़ो जाती है,
वतन वो पेड़ जिसके,
तले हम छाँव पाते हैं,
ये वो गगन है जिसके,
तले हम स्वतंत्र गीत गाते हैं,
वतन हँसता है तभी तो हम,
मुस्कुराते हैं,
वतन हीं आत्मा है,
वतन हीं हमारा गुलशन है,
देश हीं आत्मा है,
देश हीं हमारा गुलशन है,
देश हीं आत्मा है,
देश हीं हमारा गुलशन है
कवि मनीष
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