नीत दिन करे जो सुमिरन राम का,
है बन जाता वो पहचान सम्मान का,
जो है मानता राम के अस्तित्व को,
है वो बन जाता प्रिय हनुमान का
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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