अशांत मन को जो कर दे शांत,
जो समस्त नकरात्मकताओं का कर दे अंत,
है ऐसी शक्ति समाई इनमें,
हैं ये वो परमशक्ति जो कर दें क्षणभर में रंक को राजा और राजा को रंक
कवि मनीष
प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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