Friday, 31 July 2020

बरखा बरसती है झमा, झम,झम,
धरती गुनगुनाती है गुन,गुन,गुन,
हर मंज़र है हो जाता सुहाना,
जब हरियाली लहलहाती है, खुश है हो जाता तन,मन धन

कवि मनीष 
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