शूलों की डगर पे चलके,
मृत्यु की डगर पे चलके,
हमनें हासिल की जीत की मंज़िल,
रात को दिन करके,
दिन को रात करके,
हासिल हमनें की जीत की मंज़िल,
कौन कहता है,
पतझड़ में खिलते नहीं गुल,
हमनें तो पतझड़ को भी,
बहार में बदल डाला,
लहू की हर इक बूंद पे,
लिखके इबारत ए फ़तेह,
हमनें अपना सर्वस्व दे डाला,
हमारे हुंकार से,
पर्वतों के वक्ष भी गयें हिल,
शूलों की डगर पे चलके,
मृत्यु की डगर पे चलके,
हमनें हासिल की जीत की मंज़िल,
रात को दिन करके,
दिन को रात करके,
हासिल हमनें की जीत की मंज़िल
कारगिल विजय दिवस की अनंत शुभकामनाएँ
कवि मनीष
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