हो सकता है वो कैसे बेसहारा,
जिसको देती हैं माता सहारा,
है हो जाता वो सबसे ताक़तवर,
जिसपे हैं लुटाती माता अपना प्रेम सारा
कवि मनीष
प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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