हर रंग समाया है उसमें,
है काल को हराया उसनें,
सारे जग को विष से बचाया,
कहते हैं महाकाल उसे सारे जग में
कवि मनीष
प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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