माता के दर पे जो जलाते हैं दीप,
उनके मन में हैं सदा जलते आशा के दीप,
निराशा होती है उनसे कोसों दूर,
मन में है ज़िंदा रहता उनके सदा प्रीत,
है रहता सदा माथे उनके ताज वसंत का,
रहते नहीं वो कभी भी भीत,
है रहता उनके भीतर बल सिंहों का,
उनसे नहीं पाता कोई जीत,
माता के दर पे जो जलातें हैं दीप,
उनके मन में हैं सदा जलते आशा के दीप,
निराशा होती है उनसें कोसों दूर,
मन में है ज़िंदा रहता उनके सदा प्रीत
कवि मनीष
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