जलती है ज्योत आशाओं की,
बुझती है ज्योत निराशाओं की,
हर अर्चन घुटनें टेकती है जहाँ,
वो दर है शिरडी वाले साईं की,
है रहता सत्य वहाँ मौन नहीं,
इच्छाएँ वहाँ कभी मरतीं नहीं,
बुराईयों का अस्तित्व है जलता जहाँ,
वो दर है शिरडी वाले साईं की,
जलती है ज्योत आशाओं की,
बुझती है ज्योत निराशाओं की,
हर अर्चन घुटनें टेकती है जहाँ,
वो दर है शिरडी वाले साईं की
कवि मनीष
****************************************
No comments:
Post a Comment