Monday, 27 April 2020


माता के दर है लगता भक्तों का ताँता,
मन में जिनके प्रेम समाता,
है माता को बस वही भाता,

है बरसती बहार यूँ झूम झूमकर,
जैसे गिर रहें हों अम्बर से तारे टूट टूटकर,
है माता के दरबार का तो ग़ज़ब नज़ारा,
है जो जाता लौट के ज़रूर आता बारंबारा,

माता के दर है लगता भक्तों का ताँता,
मन में जिनके प्रेम समाता,
है माता को बस वही भाता 

कवि मनीष 
****************************************

No comments:

Post a Comment

प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...