माता के दर है लगता भक्तों का ताँता,
मन में जिनके प्रेम समाता,
है माता को बस वही भाता,
है बरसती बहार यूँ झूम झूमकर,
जैसे गिर रहें हों अम्बर से तारे टूट टूटकर,
है माता के दरबार का तो ग़ज़ब नज़ारा,
है जो जाता लौट के ज़रूर आता बारंबारा,
माता के दर है लगता भक्तों का ताँता,
मन में जिनके प्रेम समाता,
है माता को बस वही भाता
कवि मनीष
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