ख़ून की बूंदो नें कहा,
मेरा कण-कण है हो जाता ईश्वरीय,
जब मैं बहता हूँ,
शहीद ए क़ौम के बदन से,
मृत्यु की डोर से बंधके भी,
मैं समा जाती हूँ ज़िन्दगी में,
ये सिंहों का है जिस्म,
रहती हूँ मैं जहाँ,
ख़ून की बूंदो नें कहा,
मेरा कण-कण है हो जाता ईश्वरीय,
जब मैं बहता हूँ,
शहीद ए क़ौम के बदन से
कवि मनीष
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