श्याम जब-जब,
तू बजाए बंसी,
मैं कभी हँसती,
तो कभी रोती,
तेरी बंसी जग में
सारे प्रेम फैलाए,
सुख-दुःख के नयनों
से नीर बहाए,
तेरी बंसी के तान में,
मैं अपनीं सुध-बुध ख़ोती,
तेरी बंसी के रागों में,
जीवन माला हूँ गूंथती,
श्याम जब-जब,
तू बजाए बंसी,
मैं कभी हँसती,
तो कभी रोती
कवि मनीष
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