2222,222,222
हम तो डरते थें मरनें से हर दिन,
हम तो भागते थें जीनें से हर दिन,
पर अब हर खुशबू प्यारी लगती है,
अब तो बचते हैं मरनें से हर दिन
रूबाई
कवि मनीष
प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
No comments:
Post a Comment