2222,222,222
मेरे मन में भी है रहता इक मन,
मेरे मन में भी है रहता इक मन,
है सावन जैसे हूँ मैं वैसा हीं,
मेरे मन में भी है रहता इक मन
रूबाई
कवि मनीष
प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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