सुना है जग को,
तुम चलाते हो,
जीवन का पहिया,
तुम चलाते हो,
जब भी आते हो तुम,
साथ बहार आती है,
गगन से आते हीं तेरे,
नूर बरसती है,
तो फिर मुझपे भी किरपा,
अपनीं करते रहना,
जीवन को मेरे भी,
सुमन सा सुगन्धित करते रहना,
तुम तो अपनें सच्चे भक्तों की,
सदा सुनते हो,
सुना है जग को,
तुम चलाते हो,
जीवन का पहिया,
तुम चलाते हो,
सुना है जग को,
तुम चलाते हो
कवि मनीष
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