Saturday, 24 August 2019

सुना है जग को..

सुना है जग को,
तुम चलाते हो,
जीवन का पहिया,
तुम चलाते हो,

जब भी आते हो तुम,
साथ बहार आती है,
गगन से आते हीं तेरे,
नूर बरसती है,

तो फिर मुझपे भी किरपा,
अपनीं करते रहना,
जीवन को मेरे भी,
सुमन सा सुगन्धित करते रहना,

तुम तो अपनें सच्चे भक्तों की,
सदा सुनते हो,
सुना है जग को,
तुम चलाते हो,

जीवन का पहिया,
तुम चलाते हो,
सुना है जग को,
तुम चलाते हो 
कवि मनीष 

No comments:

Post a Comment

प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...