है परिंदों की दुनिया स्वछंद गगन,
बस यही है इनका चैन ओ अमन,
है अक्षम्य अपराध क़ैद करना इन्हें,
है पेड़ों की शाख इनका जीवन
कवि मनीष
प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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