है मंज़िल से होता उसी का वास्ता,
जो बस आत्मविश्वास के साथ है बढ़ता रहता
कवि मनीष
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संसार को जो हैं देखते प्रेम के चश्मे से बार-बार,
उन्ही के आशियानें में है लौट के आती बहार बार-बार
कवि मनीष
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भंवरे नें कहा प्रेम की गली में है तेरा इंतज़ार,
सुनते हीं गुल के चेहरे पर बिख़र गई बहार
कवि मनीष
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