आईन ए हक़ीक़त से जब हुआ,
उस दिन सामना,
मैं समझ गया अब तो बस है,
ज़िन्दगी भर जागना,
जिस दिन सो गया,
ये ज़िन्दगी भी जाएगी सो,
फ़िर पड़ेगा रोज़,
ख़ुद से हीं भागना,
मैं ये समझ गया,
है ज़िन्दगी पहाड़,
और मैं हूँ इसका पर्वतारोही,
और मुझे है हर क़ीमत पर इसे नापना,
ज़िन्दगी में बहोत बन लिया राम,
अब रावण का है क़िरदार निभाना,
मैं हूँ सबसे बड़ा,
अब बस यही है समझना,
आईना ए हक़ीक़त से जब हुआ,
उस दिन सामना,
अब तो बस है,
ज़िन्दगी भर जागना
कवि मनीष
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