है जन्नत से आवाज़ उठी,
अब कश्मीर सिर्फ़ हमारा है,
आतंक के दलदल में,
डूबनें का अब ना विचार हमारा है,
बहोत भटका चुके तुम हमको,
अब ख़ुद को रस्ते पे लाना है,
ऐ आतंक के ठेकेदारों,
अब चलनें वाला ना तुम्हारा कोई चारा है,
अब अपनें बिछड़े इक हिस्से को भी हम ले लेंगे,
तुम्हारे भेजे को अब कारतूसों से खोलेंगे,
अब हर एक दहशतगर्द को दिखनेंवाला,
जहन्नुम का नज़ारा है,
है जन्नत से आवाज़ उठी,
अब कश्मीर सिर्फ़ हमारा है,
आतंक के दलदल में,
डूबनें का अब ना विचार हमारा है
कवि मनीष
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