जीना सिर्फ़ उन्ही का जीना है, जिनकी आँखों में पानीं है,
बाक़ियों का जीना तो सिर्फ़ बेईमानीं है
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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